tag:blogger.com,1999:blog-59035290257446119192024-02-18T18:34:36.190-08:00बिहार-गाथाAPNA BIHARडॉ किशोर सिन्हाhttp://www.blogger.com/profile/02420004522303978376noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5903529025744611919.post-88011371333956786852009-10-05T02:39:00.001-07:002009-10-05T03:06:52.457-07:00<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbUQOPb39j1teHJ_vrLz34C9B22DrdWCtfPxvsmRlcefVYv1Y3hUKsFay3jeS9a-WJ4JpDul6-tMPiiFQF6TxvIHJeWFDpW-VzrCZhyP7WuLReBwrNb73tch7SWBNUxLkgDNU0IEffV74/s1600-h/Pink.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbUQOPb39j1teHJ_vrLz34C9B22DrdWCtfPxvsmRlcefVYv1Y3hUKsFay3jeS9a-WJ4JpDul6-tMPiiFQF6TxvIHJeWFDpW-VzrCZhyP7WuLReBwrNb73tch7SWBNUxLkgDNU0IEffV74/s400/Pink.jpg" /></a><br />
</div><span class="Apple-style-span" style="font-size: xx-large;">विमर्श</span>डॉ किशोर सिन्हाhttp://www.blogger.com/profile/02420004522303978376noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5903529025744611919.post-87409444361284566942009-10-01T01:14:00.000-07:002009-10-05T03:06:51.447-07:00क्रांति के सांस्कृतिक सुर का पुरोधा : आरा<div align="justify"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeQduuzQnRTQWvhvqNy0cHLplhyphenhyphenZy8XWKd8NiNM3s9RWytOjJQsLgm9evFlUYKxT9vdxs0WZO_1W2G-6GSOwjvsVvuoZKnYWftBZy4Y5h72J2IkeMuf5Flw6RBgonZ1IanDnRZBjCu2fk/s1600-h/kunwar_singh.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeQduuzQnRTQWvhvqNy0cHLplhyphenhyphenZy8XWKd8NiNM3s9RWytOjJQsLgm9evFlUYKxT9vdxs0WZO_1W2G-6GSOwjvsVvuoZKnYWftBZy4Y5h72J2IkeMuf5Flw6RBgonZ1IanDnRZBjCu2fk/s320/kunwar_singh.jpg" width="204" /></a><br />
</div>आरा एक ऐसा शहर है, जहाँ आजादी की लडाई और सांस्कृतिक विरासत की गाथा एक साथ लिखी गयी। बुकानन ने १८१२ में पाया था कि आरा में कुल २७७५ घर थे, जिसमें औसतन एक घर में आठ आदमी रहते थे। उस समय का शहर संभ्रांत बंगाली परिवारों और गरीब श्रमिकों का था। किंतु १८५७ की क्रांति के साथ ही इस छेत्र में शैक्षिक और सांस्कृतिक चेतना भी जगी। और इसके सबसे बड़े सूत्रधार थे बाबू कुंवर सिंह। बाबू कुंवर सिंह ने न केवल देश को आज़ाद कराने कि लडाई लड़ी, बल्कि समाज में शिक्षा के फैलाव कि बुनियाद भी कायम की। उन्होंने स्कूल-कॉलेज खुलवाए और इसके लिए हर तरह का वित्तीय सहयोग भी दिया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पुरे भारत में आरा वो एकमात्र शहर था, जिस पर बगावत के आरोप में बाकायदा मुक़दमा चला। १८५९ में चले इस मुक़दमें का नाम था- <strong>गवर्नमेंट वर्सेस दि टाऊन ऑफ़ आरा</strong>। इसमें अभियुक्त कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह नहीं, बल्कि पूरा आरा शहर था। इसमें गवाह थीं जली हुई इमारतें, आरा हाउस में घिरे सत्र न्यायाधीश लिटिलडेल की डायरी, डायरी मारे गए अँगरेज़ सैनिकों की लाशें और जेल का टूटा हुआ फाटक। <br />
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</div><div align="justify">२७ जुलाई, १८५७ को बाबू कुंवर सिंह के सिपहसालार हरकिशन सिंह के नेतृत्व में दानापुर कैंट के विद्रोही सैनिकों ने धावा बोल दिया। ये सैनिक गंगा, सोन नदियों से होकर तथा सड़क के रास्ते से आरा पहुंचे थे। आरा के कलक्टरी और कचहरी में आग लगा दी और आरा हाउस पर कब्ज़ा कर लिया। शाहाबाद के मैजिस्ट्रेट एच सी बेक ने देखा कि विद्रोही पलटनें सरकारी अहाते और कलेक्ट्रेट में घुस गयीं हैं और वहां आगजनी तथा तोड़-फोड की जा रही है। आरा के ही एक रईस सुखानंद महाजन मौलाबाग में अपनी कोठी की छत पर पत्नी के साथ खड़े ये सब देख रहे थे। विद्रोही सिपाहियों ने ट्रेजरी से ६५ हज़ार रुपये लूट लिए और जेल से तकरीबन ५०० कैदियों को मुक्त करा लिया। स्कूल मास्टर गौद्फ्रे ने अपनी डायरी में लिखा कि छत पर रखी बालू कि बोरियों कि आड़ लेकर अँगरेज़ उन सैनिकों पर हमला कर रहे थे। ये सिलसिला दिन-रात चलता रहा। अंततः वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में आरा पर कब्ज़ा कर लिया गया और पूरे शहर में अंग्रेजों के शासन से मुक्ति की मुनादी करवाई गई। इस प्रकार आरा २७ जुलाई, १८५७ से २१ अगस्त, १८५७ तक अंग्रेजों के शासन से मुक्त रहा। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify"><br />
</div><div align="justify">बाबू कुंवर सिंह ने आरा में पूर्वी और पश्चिमी थाना कायम किया था और दोनों थानों के मैजिस्ट्रेट बनाये गए थे, नामी वकील और कुंवर सिंह के साथी गुलाम याहिया। इसी प्रकार मिल्की मोहल्ला निवासी शेख अजीमुद्दीन को पूर्वी थाने का जमादार तथा दीवान शेख अफज़ल के दो पुत्रों- तुराब अली और खादिम अली को इन थानों का कोतवाल बनाया गया था। उधर हरकिशन सिंह के नेतृत्व में आज़ाद सरकार का गठन कर लिया गया था और अमर सिंह ने मोर्चा संभाल लिया था। उस जगह पर अंग्रेज़ी राज के समानांतर ही कोर्ट-कचहरी की व्यवस्था की गयी थी। दरअसल अमर सिंह की अगुआई में जगदीशपुर में जो सरकार कायम की गयी थी, उसके वास्तविक नेता हरकिशन सिंह ही थे। उनका सैनिक संगठन काफी मज़बूत था। जनता का सुख-शान्ति ही शासन का लक्ष्य था। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify">लेकिन जल्दी ही बंगाल तोपखाने के अधिकारी विन्सेंट आयर ने ३ अगस्त,१८५७ को आरा हाउस में क़ैद अँगरेज़ अफसरों को मुक्त करा लिया। इतना ही नहीं, उसने दर्जन-भर विद्रोही सैनिकों को फांसी पर चढा दिया। इनमें सिपाही रामनारायण पांडे, नबी बख्श, गंभीर सिंह, मंसूर अली खान, शेख वजीर, शेख अहमद, मनसा राम, महाबन ग्वाला, गणेश सिंह और सिपाही पुतुल सिंह थे। आरा में विद्रोहियों को फांसी चढाने का सिलसिला थमा नहीं। डंका बजाकर विन्सेंट आयर ने शहर के कई लोगों को फांसी की सज़ा सुनायी। इस क्रम में कुंवर सिंह के साथी गुलाम याहिया, अब्बास अली, बन्दे अली और छोटे कुर्मी को सरेआम फांसी दे दी गयी। इस तरह ये आग धधकती रही लेकिन दूसरी तरफ़ सामाजिक और शैक्षिक चेतना का नया दौर शुरू हो चुका था । <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify"><br />
</div><div align="justify">१८५४ से १८८२ के बीच शाहाबाद क्षेत्र में शिक्षा का आरंभिक विकास दिखायी देता है। १८५५ में यहाँ मिद्दले स्कूल की स्थापना हुई। इसके बाद १८८२ में आरा टाऊन स्कूल की स्थापना की गयी। इसकी स्थापना के साथ ही उच्च-मध्य वर्ग के लोगों में शिक्षा की चेतना विकसित हुई। अठारहवीं सदी के पांचवें-छठे दशक के बाद से तो शाहाबाद क्षेत्र में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का क्रम उत्तरोत्तर बढ़ता चला गया और १९०१ आते-आते इस क्षेत्र में कुल ११४ स्कूलों की स्थापना हो चुकी थी। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify">इतना ही नहीं, आगे चलकर आरा नागरी प्रचारिणी सभा की गतिविधियों का भी केन्द्र बना। स्वतंत्रता-आन्दोलन के दौरान यहाँ क्रांतिकारियों की महत्वपूर्ण बैठकें हुआ करती थीं। उस समय रघुवंश नारायण सिंह, हंसराज सिंह, दीपनारायण सिंह, हारुन साहेब और रामनरेश त्रिपाठी-जैसी शख्सियतें अत्यन्त सक्रिय थीं। यहाँ से तब कई क्रन्तिकारी पत्र-पत्रिकाएं भी प्रकाशित हुईं, जिनमें 'स्वाधीन भारत' और 'अग्रदूत' प्रमुख थीं। इन पत्रिकाओं के प्रकाशन में रामायण प्रसाद तथा बनारसी प्रसाद भोजपुरी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify">इसके बाद १९०३ में जैन सिद्धांत भवन और १९११ में बाल हिन्दी पुस्तकालय की स्थापना हुई। इसी साल पाक्षिक पत्रिका 'जैन सिद्धांत भास्कर' का प्रकाशन शुरू हुआ। इसके पश्चात १९१७ में हित नारायण क्षत्रिय स्कूल तथा मॉडल स्कूल की स्थापना हुई। ये मॉडल स्कूल ही बाद में जिला स्कूल के नाम से विख्यात हुआ। महान राजनेता बाबू जगजीवन राम, शहीद गनपत चौधरी, डॉ राम सुभग सिंह, अम्बिका शरण सिंह तथा सरदार हरिहर सिंह आदि यहीं के छात्र थे। फिर १९३४ में भुवनेश्वर मिडिल स्कूल की स्थापना हुई, जो हैटर आयोग की रिपोर्ट के बाद १९५४ में हाई स्कूल बना। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify">आर्य समाजियों ने भी शिक्षा के इस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १९२७ में स्थापित आर्यसमाज मन्दिर भी आन्दोलन की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा। वंशरोपण चौधरी की पुत्रवधू सुग्गा देवी ने सामाजिक चेतना जगाने के लिए 'आर्यवीर दल' की स्थापना की । आर्यसमाजी नेत्री सुग्गा देवी के नाम पर 'सुग्गा देवी पुस्तकालय' की स्थापना की गयी, जिसे 'श्रद्धानंद भवन' भी कहा जाता है। इस क्षेत्र के मध्यवर्गीय समाज में राजनीतिक चेतना १९२० से १९४७ के बीच बहुत विकास पा चुकी थी। १९२१ में जब गांधीजी सासाराम और बक्सर के साथ-साथ आरा में भी पधारे तो यहाँ आन्दोलन की गति को और भी बल मिला। १९२१ में आरा में ही कोंग्रेस का प्रथम बिहार राजनैतिक सम्मलेन आयोजित हुआ, जिसमें गांधीजी के साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद भी शरीक हुए। इस प्रकार १९३० आते-आते असहयोग आन्दोलन काफी तेज़ हो गया था। इस आन्दोलन में यहाँ से दीप नारायण सिंह, दुर्गा शरण सिंह, सरदार हरिहर सिंह, पत्रकार नंदकिशोर तिवारी तथा मुरलीधर श्रीवास्तव ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। पत्रकार नंदकिशोर तिवारी ने यहीं से 'चाँद' पत्रिका का 'फांसी अंक' निकाला और भवानी दयाल सन्यासी तथा दुर्गा शरण सिंह ने 'कालावास' पत्रिका निकाली। फिर १९३७ में आरा नगरी प्रचारिणी सभा ने 'स्वाधीन भारत' पत्रिका निकाली, जिसके सम्पादक रामायण प्रसाद और बनारसी प्रसाद भोजपुरी थे। इसी प्रकार १९३७ में ही मुरलीधर श्रीवास्तव ने काका कालेलकर और गांधीजी के साथ हिन्दी-स्वदेशी जागरण किया, जिसे आगे चलकर १९३९ में बनारसी प्रसाद भोजपुरी ने 'अग्रदूत' पत्रिका का प्रकाशन कर और आगे बढाया। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify">फिर आया अगस्त क्रांति का दौर। क्रांतिवीरों ने एक बार फिर अंग्रेजों को ललकारा। क्रांतिकारियों का एक दल कचहरी पर तिरंगा फहराने कवि कैलाश के नेतृत्व में पहुँचा। फिरंगियों की गोली से कवि कैलाश शहीद हो गए। उसके बाद भगदड़ मच गयी। किंतु तबतक क्रांति की आग हर जगह फैल चुकी थी। इसी क्रम में १५ सितम्बर, १९४२ को लासधि (lasadhi) गाँव में कुछ युवा तिरंगा फहराकर सभा कर रहे थे, तभी अंग्रेजों ने उन्हें मशीनगन से भून डाला। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify">आरा की ऐतिहासिक क्रांतिकारी धरती साहित्यकार आचार्य शिवपूजन सही और सदल मिश्राके योगदान के लिए भी विख्यात है। फोर्ट विलियम कॉलेज के प्राध्यापक सदल मिश्रा आधुनिक गद्य शैली के रचयिता माने जाते हैं। इतना ही नहीं, २१ जनवरी, १९४२ को स्थापित हर परसाद दास जैन कॉलेज भी स्वतंत्रता की गौरवमयी गाथा लिखने में पीछे नहीं रहा। दुमराऊँ (dumraon) के महाराज रणविजय प्रसाद सिंह ने ८१ बीघा ज़मीन और एक लाख ५५ हज़ार की राशि देकर इसकी स्थापना कराई थी। <br />
</div><div align="justify"></div><div align="justify">फिर भी, आरा की क्रांति के इतिहास में बाबू कुंवर सिंह का नाम अग्रणी है, इसीलिए उस वीर की याद में बिहार अश्वारोही पुलिस का मुख्यालय आरा में ही बनाया गया। <br />
</div>डॉ किशोर सिन्हाhttp://www.blogger.com/profile/02420004522303978376noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5903529025744611919.post-74653047806593262462009-09-28T23:28:00.000-07:002009-10-05T03:06:51.447-07:00स्वतंत्रता आन्दोलन की कर्मस्थली : गया<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNkonbX7-Yle56xq2Vxe9gk2KMola1aMsmWgk74dUi-7kflHIgH0eJ9_iRkjxJry-Cysi1T6Oozk-VmjuZ9gcX_mNN-ZqTbe9PAglOW1KaIO1EwmTKMLiUrzl3uVq02fpG6LiRn7p3tzM/s1600-h/chandrasekhar_azad.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNkonbX7-Yle56xq2Vxe9gk2KMola1aMsmWgk74dUi-7kflHIgH0eJ9_iRkjxJry-Cysi1T6Oozk-VmjuZ9gcX_mNN-ZqTbe9PAglOW1KaIO1EwmTKMLiUrzl3uVq02fpG6LiRn7p3tzM/s320/chandrasekhar_azad.jpg" /></a><br />
</div><span style="color: red;"><br />
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<span style="font-size: 180%;"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> गया</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">एक महान तीर्थस्थली </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">है, </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">जहाँ से सत्य और अहिंसा के </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">उदघोष </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">के साथ-साथ मनुष्यों के जन्म <span class="Apple-style-span" style="font-size: 25px; line-height: 45px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">से मुक्ति का महाघोष भी </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">सुनाई </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">देता है। कहा जाता है </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">कि </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">गया,</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> धरती पर आतंक कायम रखने वाले विष्णुभक्त गयासुर के शरीर पर बसा है। इस गयासुर </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">की </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">चर्चा वेदों में भी मिलती है। कहा जाता है </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">कि </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">गयासुर का विशालकाय शरीर </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">गयाशीर्ष </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">की </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">पहाडियों से होकर आँध्रप्रदेश के गयापद हिल तक सुप्तावस्था में पड़ा था। इसलिए इसके </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">सिर </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">वाले स्थान का नाम गयाशीर्ष और पैर वाली जगह का नाम गयापाद पड़ गया। </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">धरती पर आतंक कायम रखने वाले </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">गयासुर का आतंक ख़त्म के लिए देवों ने छल से इसके हृदय पर विष्णुय्ग्य करवाकर उसका वध इसक करवा दिया।</span></span></span><br />
</div></span><br />
<blockquote><div style="text-align: justify;"><div style="text-align: justify;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> गया ऐसा ही प्रदेश है, जहाँ का जिला स्कूल, टी मॉडल स्कूल, हरिदास सेमिनरी, कासमी मिडल स्कूल और टेकारी राज हाई स्कूल उन पुराने विद्यालयों में से है, जहाँ क्रांति की मशालें जलती रहीं और उनकी लपटें दूर-दूर तक फैलती चली गयीं। १३ अगस्त को क्रांतिकारियों का कोतवाली पर प्रदर्शन हुआ। अगस्त क्रांति पर तिरंगा फहराते कई छात्र गिरफ्तार कर लिए गए। गाँधी जी के 'करो या मरो' के आहवान के बाद डोमन प्रसाद और रामकिशुन जी को विरोध-प्रदर्शन करते हुए अंग्रेज़ी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। </span><br />
</div></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> पर ये तो बाद की बात है। सबसे पहले यहाँ राजगीर परगने पर कब्ज़ा कर के अंग्रेज़ी राज के खात्मे का संकेत दे दिया गया था, पर अंग्रेजों ने रजा हैदर अली खान को गिरफ्तार कर फांसी की सज़ा दे दी। सरदार जवाहर रजवार, एतवा रजवार और जमादार रजवार ने १० अगस्त, १८५७ को फतेहपुर में विप्लव किया। उन्होंने वहीं गुरिल्ला लडाई की शुरुआत की। २० सितम्बर, १८५७ को मौजा उरसा के ख्वाजा वजीर अली पर आक्रमण करने के दौरान रजवार खेत रहे। प्रतिक्रिया में अंग्रेजों ने तारापुर, खारंपुर, हरिपुर, सकरपुर, पासी, बर्हत और गोविंदपुर को जला दिया। इसके बाद २४ सितम्बर, १८५७ को रजा मेहंदी अली खान ने अंग्रेंजों के ख़िलाफ़ लडाई शुरू कर नवादा पर कब्ज़ा कर लिया। </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgQxn1GLrtjPcXqfz4u91tJ9uJfEwVbuNN0dIUNbWaOLeERzOvcIPmfYIkCASuFU8w3k2e19R4LdALVZOhoqe9PvG6oEST55puVoqomx3kxBJSRCubFG0nWO4itVtoqW0olK_umZfr6k8/s1600-h/bhagat_singh1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgQxn1GLrtjPcXqfz4u91tJ9uJfEwVbuNN0dIUNbWaOLeERzOvcIPmfYIkCASuFU8w3k2e19R4LdALVZOhoqe9PvG6oEST55puVoqomx3kxBJSRCubFG0nWO4itVtoqW0olK_umZfr6k8/s320/bhagat_singh1.jpg" /></a><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> सत्य और अहिंसा के रास्ते चलकर ज़ुल्म का प्रतिकार करने की कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। ११ मार्च, १९२२ को सत्याग्रह करते हुआ जब गाँधी जी गिरफ्तार हेर तो यहाँ भी विद्रोह भड़क उठा और लोग जगह-जगह सभाएं कर गिरफ्तारियां देने लगे। इसी गया में १९२२ में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित हुआ। इसमें गाँधी जी, पंडित जवाहर लाल नेहरूऔर लाल बहादुर शास्त्री-जैसी हस्तियों ने हिस्सा लिया था। इसके बाद क्रांति की ये आग और भी परवान चढी। </span><strong><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">'गया काउन्स्पिरेसी कांड'</span></strong><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> इसका गवाह है। १९२८ की वो क्रन्तिकारी कहानी पुरी दुनिया को मालूम है जब देश के सशश्त्र क्रांतिकारी दस्ते के टेररिस्ट मूवमेंट के दौरान बंगाल के गवर्नर की हत्या हुई। इसकी योजना यहीं बनी थी। चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त- सभी उसमें शरीक हुए थे।</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium; line-height: 28px;"> सी आई डी इंसपेक्टर आई एस गांगुली की रिपोर्ट पर हाईकोर्ट ने १७ क्रांतिकारियों को इस केस में सज़ा दी। विश्वनाथ माथुर, श्याम बर्थ्वार, सूर्य सेन, शत्रुघ्न शरण सिंह, जगदेव लोहार और सहदेव सिंह-जैसे १७ क्रांतिकारियों को कालापानी की सश्रम सज़ा हुई। इसी बीच क्रांतिकारियों ने इम्पिरिअल मेल से डाल्टेनगंज कॉटन मिल के लिए भेजी जा रही चांदी की सिल्लियों को गया में लूट लिया।</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> इसी क्रम में १३ अगस्त, १९४२ को कोतवाली पर क्रांतिकारियों का जुलूस निकला। ताराचंद जैन और बाधो बरनवाल अंग्रेजों की गोलियों से ज़ख्मी हो गए। रामकिशुन माली, अब्दुल रऊफ, कन्हैया प्रसाद, कामेश्वर, लादू राम, गंगा, बिशुन और डोमन प्रसाद-जैसे कई क्रांतिकारी छात्र गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें सश्रम कारावास की सज़ा भुगतनी पड़ी। </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> फिर आया १४ अगस्त, १९४२ का दिन। गया कोतवाली पर क्रांतिकारियों का जुलूस निकला। अंग्रेज़ी हुकूमत ने गोलियाँ चलवायीं। और इस गोलीकांड में कैलाश, जगन्नाथ मिश्रा और मुई राम- जैसे नौजवान शहीद हो गए। इस गोलीकांड के विरोध में क्रांतिकारी अवध बिहारी शरण ने अपने हाथ से लिखे पोस्टर मानपुर की दीवारों पर रातों-रात चिपका डाले। इसमें लिखा था- 'अंग्रेंजों, भारत छोडो'। इसके बाद गया शहर में कोहराम मच गया। सी आई डी के लोग इन सभी की खोज करने लगे। बाद में सोशलिस्ट पार्टी के कुछ सदस्यों की गिरफ्तारियां भी हुईं। </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">आज भी सार्जेंट मेजर की गोली से शहीद हुए मुई राम, जगन्नाथ मिश्रा और कैलाश राम की मूर्तियाँ घामी टोला और कोतवाली पर लगी हैं, जो इन शहीदों की शहादत की मौन गवाही दे रही हैं।</span><br />
</div></blockquote><div align="justify"><br />
</div>डॉ किशोर सिन्हाhttp://www.blogger.com/profile/02420004522303978376noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5903529025744611919.post-73199296588438283592009-09-24T05:22:00.000-07:002009-09-24T06:21:58.797-07:00बिहार : कैमरे की नज़र से<div align="justify">बिहार हमेशा से एक अनूठा प्रदेश रहा है। यहाँ की ऐतिहासिक इमारतें, सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक प्राचीन स्थल और गंगा-जमुनी तहजीब में रचा-बसा शहर अपनी कहानी ख़ुद कहते हैं ।<br /><br /></div><div align="center">पेश है, <span style="font-size:130%;color:#000099;">बिहार की कहानी, कैमरे की ज़ुबानी<br /></span><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGzFVBvUwnr5Aq4e0n3fFNGOnL8dOWxMY9V7fVXZyHkwe8IvmgiYKhZzPYhLbaTe_DiPQGbgHqc6JirA-p-qvpLObujWv0FxyeIiGyEQ8xnWvn30mtr_6MsXDK-rnf4YmKyVX470mQ8Xk/s1600-h/Golghar-1.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385011954869594690" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 226px; CURSOR: hand; HEIGHT: 170px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGzFVBvUwnr5Aq4e0n3fFNGOnL8dOWxMY9V7fVXZyHkwe8IvmgiYKhZzPYhLbaTe_DiPQGbgHqc6JirA-p-qvpLObujWv0FxyeIiGyEQ8xnWvn30mtr_6MsXDK-rnf4YmKyVX470mQ8Xk/s320/Golghar-1.JPG" border="0" /></a><br /></div><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6-CEnGk1nudCcSBFFoRcWKPS81BObjHUan2yER_EN63UefM72hNs4ft4zAOubxIRIQmBVcWPFscBP6Tm-4yQ7Qd8E8-wp09XNQEfb-K3eLWXiYCRG1AZnc7FqAVf2avCgt4IqDStcFBE/s1600-h/Khuda+Baksh+Oriental+Library.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385012242692907330" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 212px; CURSOR: hand; HEIGHT: 169px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6-CEnGk1nudCcSBFFoRcWKPS81BObjHUan2yER_EN63UefM72hNs4ft4zAOubxIRIQmBVcWPFscBP6Tm-4yQ7Qd8E8-wp09XNQEfb-K3eLWXiYCRG1AZnc7FqAVf2avCgt4IqDStcFBE/s320/Khuda+Baksh+Oriental+Library.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><br /><span style="font-size:85%;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7GV_4z2dIRBqyt9NopvhPlIzfgtD5cWotOrGtqIdBkoDiedK-Hzciiyhy4xZ2qzbPFRV4_vmjhiEsaT_zfFKfFgDvUbbfrj42-57mrRBnV4hAK6uHuOtL09NRuPdEA9f_jZ4_X52e8RY/s1600-h/80+Foot+Buddha+Statue.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385011287440005170" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 170px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7GV_4z2dIRBqyt9NopvhPlIzfgtD5cWotOrGtqIdBkoDiedK-Hzciiyhy4xZ2qzbPFRV4_vmjhiEsaT_zfFKfFgDvUbbfrj42-57mrRBnV4hAK6uHuOtL09NRuPdEA9f_jZ4_X52e8RY/s320/80+Foot+Buddha+Statue.JPG" border="0" /></a></span><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSZcXPeqWcnsqIEXg_SoTzA-CADGIjrlCH4HssIzRQE46Q9u8YI5YtS0UriSgJTnCEmGchBr_tPXMsAmW9bHksKqkYZffn-ljRGHOoYO4ZmLsLwYn393T8ZqlTrIMaUMotyUaVwwK8UDs/s1600-h/Ariel+Ropeway-rajgeer.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385010961266603234" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 199px; CURSOR: hand; HEIGHT: 155px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSZcXPeqWcnsqIEXg_SoTzA-CADGIjrlCH4HssIzRQE46Q9u8YI5YtS0UriSgJTnCEmGchBr_tPXMsAmW9bHksKqkYZffn-ljRGHOoYO4ZmLsLwYn393T8ZqlTrIMaUMotyUaVwwK8UDs/s320/Ariel+Ropeway-rajgeer.JPG" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIQ7Inp0ol8mHTI5IMghHV4TvtMRwESrMmy8h35Yq_batmw7J59Aw4VB1EDPHDBCtXm4dsUEa7Miqg94T5Rizu_-0h46gL7NA57Wr3U1v3J3-5XmgKnF652A4yk5C_Y2XUiKHvVgDhaig/s1600-h/BODHGAYA+TEMPLE.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385011580381819330" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 229px; CURSOR: hand; HEIGHT: 153px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIQ7Inp0ol8mHTI5IMghHV4TvtMRwESrMmy8h35Yq_batmw7J59Aw4VB1EDPHDBCtXm4dsUEa7Miqg94T5Rizu_-0h46gL7NA57Wr3U1v3J3-5XmgKnF652A4yk5C_Y2XUiKHvVgDhaig/s320/BODHGAYA+TEMPLE.jpg" border="0" /></a><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqAvPERfE5y5PqdWIM5K56puSN1wb-6Aci98xi-OLKIAwP2_Xjkct9JknXSiX3C58neHwb_yx3lPwhNQQQTbmyD6iCwtX2JL4iOp7-amp1JgdCm4f0boLleHjc79SL8RHevc0ax-uPPyE/s1600-h/EXCAVATED+RUINS+OF+NALANDA+MAHA+VIHAR-12.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385011775700028658" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 208px; CURSOR: hand; HEIGHT: 154px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqAvPERfE5y5PqdWIM5K56puSN1wb-6Aci98xi-OLKIAwP2_Xjkct9JknXSiX3C58neHwb_yx3lPwhNQQQTbmyD6iCwtX2JL4iOp7-amp1JgdCm4f0boLleHjc79SL8RHevc0ax-uPPyE/s320/EXCAVATED+RUINS+OF+NALANDA+MAHA+VIHAR-12.JPG" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><p><span style="color:#000099;"></span></p>डॉ किशोर सिन्हाhttp://www.blogger.com/profile/02420004522303978376noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5903529025744611919.post-24334609156713521002009-09-18T08:26:00.000-07:002009-09-23T00:42:13.352-07:00प्रसारण की क्षमता<div align="justify"><span class=""><span style="font-size:180%;"><span class=""><span class=""></span></span></span></span></div><div align="justify"><span class=""><span style="font-size:180%;"><span class=""><span class=""><span style="color:#ff0000;">शब्दों की आकाश-यात्रा</span> </span></span></span></span></div><div align="justify"><span class=""><span style="font-size:180%;"><span class=""><span class=""></span></span></span></span></div><div align="justify"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br /></span></div><div align="justify"><span class=""><span style="font-size:180%;"><span class=""><span class="">प्रा</span></span></span>रम्भ</span> में रेडियो की उपयोगिता समुद्री जहाजों और सेना में ही थी । वहाँ संदेशों के आदान-प्रदान के लिए रेडियो का इस्तेमाल होता था। उस समय रेडियो 'वायरलेस सिस्टम' के अलावा कुछ नही था। <span style="color:#ff0000;"><span style="color:#000000;"><span class="">रेडियो</span> के साथ</span> </span>एक विचित्र बात ये है कि इसकी खोज या निर्माण का कोई एक दावेदार नहीं है; न ही किसी एक को इसका श्रेय दिया गया है। सन् १८६४ में वायरलेस कि स्थिति मात्र सैद्धांतिक थी, जब स्कॉट्लैंड के गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने अपना एक शोध-पत्र प्रकाशित कराया था, जिसके अनुसार किसी भी संकेत को इलेक्ट्रो-<span class="">मैग्नेटिक</span> प्रोसेस द्बारा कहीं भी भेजना सम्भव है। रेडियो इस प्रोसेस की दो विशेषताओं से युक्त है। एक, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल का अलग-अलग फ्रीक्वेंसी तक प्रसरण और दूसरा अवरोध के स्तर का <span class="">निर्धारण। मैक्सवेल </span>का ये सिद्धांत अदृश्य इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों की मौजूदगी को स्वीकार करता है, जो एक स्थान तक जा सकती थीं.<br /><span class=""><span class=""><span class=""></span></span></span></div><div align="justify"><br /></div><div align="justify"><span class=""><span class="">इसके </span></span>बीस वर्षों के बाद १८८७ में हेनरिक हेर्त्ज़ ने एक क्रूड स्पार्क प्लग जनरेटर का निर्माण किया जिसके द्वारा </div><div align="justify">एक इलेक्ट्रिक स्पार्क को रिसीविंग कॉयल द्वारा खोजा जा सकता था । इस प्रकार हर्ट्ज़ ने वायरलेस संकेतों को मापने में सफलता पाई । इसीलिए इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगो की इकाई के माप का नाम 'हर्ट्ज़'- हेनरिक हर्ट्ज़ के नाम के साथ जुड़ गया। </div><div align="justify"><span class=""><span class=""></span></span> </div><div align="justify"><br /></div><div align="justify"><span class="">लेकिन</span> वायरलेस के क्षेत्र में सबसे उल्लेखनीय सफलता पाई इटली के गुग्लिएल्मो मार्कोनी ने। मार्कोनी ने अपने प्रयोग १८९४ में प्रारम्भ किए और उसने हर्ट्ज़ की खोज को आगे बढाते हुए ये स्थापित किया कि बाहरी एंटीना के प्रयोग से विद्युत-संकेतों को बढाया जा सकता है। इसके अलावा उसने वायरलेस संकेतों को नियंत्रित करने के लिए एक टेलीग्राफ कुंजी को इससे जोड़ा और उसने एक ऐसे वायरलेस सिस्टम के निर्माण में सफलता पाई जो विद्युत संकेतों को दो मील कि दूरी तक भेजने और ग्रहण करने में सक्षम था। फिर भी, ये सिस्टम 'मोर्स कोड' और 'डॉट डिशेज' से मुक्त नही था।</div><div align="justify"><span class=""></span> </div><div align="justify"><br /></div><div align="justify">दूसरी तरफ़ अमेरिका में कार्यरत कनाडा के एक वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेस्सेंदें एक ऐसा वायरलेस सिस्टम बनाना चाहते थे जो लगातार किसी कैरियर वेव का इस्तेमाल कर सके। फेस्सेंदें ने १९०६ में पहला विज्ञापित प्रसारण अमेरिका के ब्रांत-रौक मेसठुट्स स्थित १२८ मीटर ऊँचे खंभे से किया। ये 'मोर्स कोड' प्रणाली से मुक्त प्रसारण था, जिसमें बाइबिल के अंशों पर आधारित नाटक 'ओ होल्ली नाईट' का वाइलिन पर प्रसारण और श्रोताओं से बातचीत शामिल थी और फेस्सेंदें के पहले रेडियो श्रोता बने जहाजों के रेडियो ओपरेटर और अखबारों के रिपोर्टर। हालाँकि इसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, लेकिन फेस्सेंदें का ये प्रयास न सिर्फ़ पहले 'मोर्स कोड मुक्त' प्रसारण के लिए याद किया जाता है; बल्कि उसे विश्व के पहले 'डिस्क जौकी' के रूप में भी मान्य किया जाता है। </div><div align="justify"><br /></div>डॉ किशोर सिन्हाhttp://www.blogger.com/profile/02420004522303978376noreply@blogger.com0