शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

प्रसारण की क्षमता

शब्दों की आकाश-यात्रा

प्रारम्भ में रेडियो की उपयोगिता समुद्री जहाजों और सेना में ही थी । वहाँ संदेशों के आदान-प्रदान के लिए रेडियो का इस्तेमाल होता था। उस समय रेडियो 'वायरलेस सिस्टम' के अलावा कुछ नही था। रेडियो के साथ एक विचित्र बात ये है कि इसकी खोज या निर्माण का कोई एक दावेदार नहीं है; न ही किसी एक को इसका श्रेय दिया गया है। सन् १८६४ में वायरलेस कि स्थिति मात्र सैद्धांतिक थी, जब स्कॉट्लैंड के गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने अपना एक शोध-पत्र प्रकाशित कराया था, जिसके अनुसार किसी भी संकेत को इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक प्रोसेस द्बारा कहीं भी भेजना सम्भव है। रेडियो इस प्रोसेस की दो विशेषताओं से युक्त है। एक, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल का अलग-अलग फ्रीक्वेंसी तक प्रसरण और दूसरा अवरोध के स्तर का निर्धारण। मैक्सवेल का ये सिद्धांत अदृश्य इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों की मौजूदगी को स्वीकार करता है, जो एक स्थान तक जा सकती थीं.

इसके बीस वर्षों के बाद १८८७ में हेनरिक हेर्त्ज़ ने एक क्रूड स्पार्क प्लग जनरेटर का निर्माण किया जिसके द्वारा
एक इलेक्ट्रिक स्पार्क को रिसीविंग कॉयल द्वारा खोजा जा सकता था । इस प्रकार हर्ट्ज़ ने वायरलेस संकेतों को मापने में सफलता पाई । इसीलिए इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगो की इकाई के माप का नाम 'हर्ट्ज़'- हेनरिक हर्ट्ज़ के नाम के साथ जुड़ गया।

लेकिन वायरलेस के क्षेत्र में सबसे उल्लेखनीय सफलता पाई इटली के गुग्लिएल्मो मार्कोनी ने। मार्कोनी ने अपने प्रयोग १८९४ में प्रारम्भ किए और उसने हर्ट्ज़ की खोज को आगे बढाते हुए ये स्थापित किया कि बाहरी एंटीना के प्रयोग से विद्युत-संकेतों को बढाया जा सकता है। इसके अलावा उसने वायरलेस संकेतों को नियंत्रित करने के लिए एक टेलीग्राफ कुंजी को इससे जोड़ा और उसने एक ऐसे वायरलेस सिस्टम के निर्माण में सफलता पाई जो विद्युत संकेतों को दो मील कि दूरी तक भेजने और ग्रहण करने में सक्षम था। फिर भी, ये सिस्टम 'मोर्स कोड' और 'डॉट डिशेज' से मुक्त नही था।

दूसरी तरफ़ अमेरिका में कार्यरत कनाडा के एक वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेस्सेंदें एक ऐसा वायरलेस सिस्टम बनाना चाहते थे जो लगातार किसी कैरियर वेव का इस्तेमाल कर सके। फेस्सेंदें ने १९०६ में पहला विज्ञापित प्रसारण अमेरिका के ब्रांत-रौक मेसठुट्स स्थित १२८ मीटर ऊँचे खंभे से किया। ये 'मोर्स कोड' प्रणाली से मुक्त प्रसारण था, जिसमें बाइबिल के अंशों पर आधारित नाटक 'ओ होल्ली नाईट' का वाइलिन पर प्रसारण और श्रोताओं से बातचीत शामिल थी और फेस्सेंदें के पहले रेडियो श्रोता बने जहाजों के रेडियो ओपरेटर और अखबारों के रिपोर्टर। हालाँकि इसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, लेकिन फेस्सेंदें का ये प्रयास न सिर्फ़ पहले 'मोर्स कोड मुक्त' प्रसारण के लिए याद किया जाता है; बल्कि उसे विश्व के पहले 'डिस्क जौकी' के रूप में भी मान्य किया जाता है।